मेरी सहेलियाँ
प्यारी सी सहेलियाँ
बड़ी ही सुंदर बड़ी ही न्यारी
ठीक वैसे कि जैसे होतीं,
खूबसूरत सी तितलियां,
हँसी सरस् है निर्झर जैसी
पर झगड़े में भी पीछे ना हों
कड़ाके की हैं बिजलियाँ,
उफ्फ ये सहेलियाँ
खूब किताबें पढ़ लीं लेकिन,
पागलपन इनका समझ न आये,
मुझको लगतीं अक्सर ही,
अबूझ सी पहेलियाँ,
हां सचमुच अजीब हैं सहेलियाँ,
मन का हो तो खूब ही अच्छा,
ना हो तो मुँह बिचकाएँ
तोहफ़े में देती झिड़कियां
हां ऐसी ही हैं सहेलियाँ,
मन के दरवाजे जब बन्द हो जाते,
चुपके से खोलें प्यार की खिड़कियाँ,
शांत हवा को पवन बना दें
बिखरा देतीं खुशबू ज्यों इत्र की शीशियाँ,
प्यारी सी सहेलियाँ,
जैसे हों तितलियां