मेरी संगिनी मेरी कलम..
मेरी संगिनी मेरी कलम,
सच कहूँ उसकी कसम,
उसके बिना कितना अधूरा,
कैसे होगा जीवन पूरा,
पल पल तुम याद आती,
देखो कितना तड़पाती,
जब तक न गुनगुनाऊँ गीत,
लेखनी से लगे अधूरी प्रीत,
कैसा मुझको शौक लगा,
अपने रंग में मुझको रंगा,
जब तक न हो कोई रचना,
रूठ जाती है मेरी सजना,
शब्द बनकर पास आती,
कितना मुझको वो लुभाती,
एक पल भी दूर नहीं होता,
इतना गहरा बन गया रिश्ता,
हर मौसम में संग चलती,
तीज त्यौहार बखान करती,
वो मुझमें, मैं उसमें समाया,
सदा चलती बनकर छाया,
खोज खोज कर उसको पाता,
कलम से मैं उसको रचता,
मेरी संगिनी मेरी कलम,
सच कहूँ उसकी कसम,