मेरी शान तिरंगा है
मेरी शान तिरंगा है
मेरी शान तिरंगा है।
मेरी मान तिरंगा है।।
मेरी अर्थी निकले,
उन राहों पर जहां
देश भक्तों ने जान गवाई थी।
तिरंगा में लिपटे
शहीद हो जाऊं
अपने देश के वीरों को
दोहराऊं
ऐसा मेरा कर्म हो
मातृसेवा मेरा धर्म हो।
इससे कभी अलग न हो पाऊं
मातृभूमि के गोदी पाऊं
इसके आंचल में शीश नवाऊं
अपने भारत माता को सीने से लगाऊं
नितदिन सेवा में इनके जाऊं
सारे अड़चने दूर
भगाऊं
तिरंगे को मैं सीने से लगाऊं
गर्व से मैं तिरंगा
लहराऊं
ड्रिल, मार्चपास्ट में सलामी लूं
अपने देश को जन्नत बनाऊं
मेरे देश के हिस्से को फिर से मिलाऊं
भारत देश को व्यापक बनाने
मातृ भूमि के रोज तिलक लगाऊं
कसम है इस देश की मिट्टी का
जर्रा जर्रा सवारूंगा
वृहद भारत बनाऊंगा।
जय हिंद जय हिंद का नारा संसार में गूंजे
ऐसा कूच कर जाऊंगा
मेरी आन तिरंगा है
मेरी शान तिरंगा है
इसे मैं रोज फहराऊंगा।
हर पल सीने से ही लगाऊंगा।
रचनाकर
कविराज
संतोष कुमार मिरी
रायपुर छत्तीसगढ़।