मेरी लेखनी कुछ तो बोल
मेरी लेखनी कभी क़िसी दिन
चुपके से सबसे बचकरके
मेरे मन की गांठे खोल
मन की बातें खुलकर बोल
मानव होकर जन्म लिया है
अपने मन का कर्म किया है
बेबस होकर यूं मत डोल
सही सही सच कह दे बोल।
मन के भाव मन मे क्यों रह गये
वाणी मे मिश्री दो घोल
मेरी लेखनी कभी क़िसी दिन
चुपके से सबसे बचकरके
मेरे मन की गांठे खोल।