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5 Sep 2018 · 1 min read

मेरी लालसा

मन के जाले सभी अब हटाओ जरा ,
नेह देखे धरा आज कितना घना ।।

मिलने आये कभी कोई बनकर नदी ,
थी अजब लालसा मैँ समुंदर बना ।

एक इतिहास रच देंगे हम आज भी ,
खोलकर के सभी आवरण तो मिलो ।

लोग पत्थर चलाते रहें हैं सदा ,
घाव देखा नहीं दिल के अंदर बना ।।

डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव अर्णव

Language: Hindi
430 Views
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