मेरी लालसा
मन के जाले सभी अब हटाओ जरा ,
नेह देखे धरा आज कितना घना ।।
मिलने आये कभी कोई बनकर नदी ,
थी अजब लालसा मैँ समुंदर बना ।
एक इतिहास रच देंगे हम आज भी ,
खोलकर के सभी आवरण तो मिलो ।
लोग पत्थर चलाते रहें हैं सदा ,
घाव देखा नहीं दिल के अंदर बना ।।
डॉ अरुण कुमार श्रीवास्तव अर्णव