“मेरी लाडली बहन”
“मेरी लाडली बहन” मेरी तरफ से आपको यही उपहार है। एक कविता लिखने का प्रयास किया हूँ। वैसे तो भाई- बहन के प्यार की डोर को इस कविता से नही बांधा जा सकता है।
लाख सुक्रिया है ख़ुदा का
जो बहन दिया उपहार में।
तेरे जैसा दूजा न कोई
इस पूरे जगत संसार मे ।।
हर सुख की सहभागी होकर
इस रिश्ते को निभाती हो।
जब आती है घड़ी दुःख की
उस वक्त भी तुम मिल जाती हो।।
हर एक छोटी सी बातों पर तेरा
नोंक-झोंक प्यारा लगता है।
तुम जब घर में रहती हो
संसार हमारा लगता है।।
वैसे तो तुम बहना हो मेरी
पर कभी दोस्त बन जाती हो ।
कभी पुत्री का रूप हो लेती
कभी मातृवत बन जाती हो ।।
रक्षा बंधन के दिन मेरी
कलाई सज धज जाती है।
भाई-बहन के इस पावन रिश्ते पर
प्रकृति भी गुनगुनाती है।।
इस घर को छोड़ जब तुम
दूजे के घर मे जाओगी।
स्वर्ग से सुंदर वो घर होगा
पर हम सब को खूब रूलाओगी।।
ये शब्द तो बस अंश मात्र है
इससे परे बहुत है ख़ास ।
मेरी कलम में इतनी ताकत नही
मैं भूलने लगा हूँ संधि-समास ।।
?️कुमार अनु