मेरी ‘लव केमिस्ट्री’
उनके लिए नीड़ बनायी थी मैंने
तिन-तिन स्वप्निल रेखाओं से
प्रेम को आलिंगन कर
सपनों को सँवार कर
हृदयनिल सीमेंट से
भावनाओं के ईंट-पाथर जोड़कर
सरिया के छोटे टुकड़े कर,
रेतों को चुन-चुनकर,
मार्बल्स को बिन कर
बड़ी मेहनत और काफी वक्त लिए
आख़िर मकां बना ली मैंने
उनके लिए !
पर तूफां को सब पता है,
रिश्तों के बारे में….
जो फ़ख़्त उजाड़ना ही जानता है !
और फिर मकां धरी रह गयी,
रिश्ते उजड़ गए….
रिश्ते और मकां बनने में
समय लगा मुझे,
बरस-दस बरस।
बरबाद होने के लिए फ़ख़त
पलभर ही काफी है
….और मेरी
‘लव केमिस्ट्री’ का यहीं
‘द एंड’ हो गई !