मेरी यादों की गुल्लक
यादों की
गुल्ल्क में मैंने
बचा कर के रखें हैं।
तुम संग बीते
अनमोल लम्हों के
कुछ किस्से।
कुच खट्टी- मीठी तो
तो कुछ कड़वी यादों के
इसमें हैं बेहद ही
बेशकीमती सिक्के
साथ किए थे जो
कभी हमने उस
हसीं सफर की
हैं कुछ रेल की टिकटें
खतों ,कार्ड की खुशबूओं
में देखों ना तुम रहते हो
आज भी मुझमें सिमटें
पुरानी यादों का
उठता हुआ बवंडर
या हमारे टूटें हुए
सपनों का ये खंड़र
तस्वीरों मैं रखा कैद
अतीत का हर मंजर
सब का सब है तरोताजा
इस गुल्ल्क के दिल में
रोज खर्च कर लेती हूँ, मैं
इन्हें बड़े एतियात से
कुछ गीतों कुछ ग़ज़लों,
या फ़िर किसी नई
ख़़ूबसूरत सी
कविता को बुनकर।