“मेरी मोहब्बत”
नशा इश्क का नहीं था मुझे साहब
वो तो सादगी उसकी थी कि
मैं उससे मोहब्बत कर वैठा
मुझे नहीं लेना था जख्म इश्क का
वो तो दर्द इतना मीठा था कि
मैं खंजर दिल के पार कर वैठा
धोखा फरेव मक्करी वेवफाई
वेईमानी बदसलूकी और वेमुरव्वत
सब मुझको झूंठे लगने लगे
मोहब्बत की हसीन वादियों में
उसकी कातिल सी निगाहों सें
‘सागर’ अपनी निगाह टकरा जो वैठा
वेखॉफ शायर :-
? राहुल कुमार सागर ?