मेरी मुझसे छनती है
जब जब मौसम से ठनती है।
अपनी किस्मत बनती है।
आहिस्ता बढ़ पाती गाड़ी,
हवा खिलाफत चलती है।
कम रफ्तार बचाती ठोकर,
शाम सलामत ढलती है।
वर्षा चलती छतरी ताने,
गर्मी पंखा झलती है।
सर्दी देती धूप गुनगुनी,
दिल को ठण्डक मिलती है।
कुछ न पहुँच में अपनी लेकिन,
चीज जरूरी मिलती है।
सबको सबसे शिकवा ही है,
किससे किसकी निभती है।
रूखी दुनियाँ क्या कर लेगी,
मेरी मुझसे छनती है।
संजय नारायण