मेरी मासूम सी बच्ची
मेरी मासूम सी बच्ची बड़ी होने लगी है
जो कल तक उठ नहीं पाती खड़ी होने लगी है।
वह मुस्काये तो रौशन हों ये दिलकश फिजायें
वह बोले तो बरस जाएं ये गहराती घटाएं
वह अपने सुख की उम्मीदें सँजोने में लगी है
मेरी मासूम सी बच्ची बड़ी होने लगी है।
वह मेहनत से उतारेगी ज़मीं पर चाँद तारे
वह महकाएगी उम्मीदों से गुलशन हमारे
वह दीपों की बनी है लौ ज्वलित होने लगी है
मेरी मासूम सी बच्ची बड़ी होने लगी है।
अभी उसकी निगाहों में है सपनों सा यह मंज़र
अभी एक ख्वाब लगता है उसे नीला समंदर
लहर सी कल्पनाओं में वह खोने लगी है
मेरी मासूम सी बच्ची बड़ी होने लगी है।
विपिन