मेरी माशूका
मेरी माशूका
मेरी माशूका
एक टकी लगाकर देखता तुझहें हूँ बस सिर्फ तू ही
नजर आती हैं न जाने हूँ मैं तेरा दिवाना बस
तु जाने तेरा दिल….
क्या रिश्ता तेरा मेरा क्यो चाहता में बस तुझहें मैं..
क्यो लगती हो तुम मुझे मेरी मुमताज क्या
सोच समझकर रभ ने बनाया तुम्हें……
क्यो बनाया रभ नें तुम्हेँ मेरे लिए क्या वजुद था
रभ का जो बनाया तुझे मेरे लिए
क्यो, कैसे किसलिए .
मै ही हूँ तेरा दिवाना क्यो बसती हो तुम मेरी हर साँस में…
हर पल तुम ही क्यो नजर आती हो
हर पल क्यो मेरी निगाह तुम्हें देखने को चाहत हैं …
हर पल तुम मेरी निगाहों में बसेरा डालती हो क्यो समाती है मेरी सासे तेरी सांसो में…
मै तुम्हें पलको से निहारकर तुम्हें क्या बनाना चाहता हूँ क्यो बनाया रभ ने तुम्हें मेरे लिए क्या मेरी लिप्सा जो तुम्हें चाहत है……
वो सिर्फ तुम हों पिंकी जो रभ बनाया मेरे लिए एक ही मिट्टी से बने अंश है दोनों…
जो हम दोनो को रभ ने बनाया एक दुसरे के लिए…. पिंकी..
स्वरचित कविता
✍✍ अभिषेक बोस विशाला
सायला (जालौर) 343032
मों.+918529243227