मेरी माँ……
जब याद तुम्हारी आती माँ। मुझको बहुत रुलाती माँ॥
तुमसे ही पाया यह जीवन
तुमने ही पोषित किया इसे
संस्कार का पाठ पढ़ा कर
शक्ति से सबल बनाया इसे
तेरे हाथों की कोमल स्पर्श
हरती है पीड़ा पल में माँ। जब याद तुम्हारी आती माँ।।
तुमने ही चलना सिखलाया
पाया जग में पहचान नया
तेरे पद की पावन रज धूली
मेरे सिर का वह ताज बना
तुमसे बड़ा ना दुजा जग में
हमदर्द कहाँ मिलता है माँ। जब याद तुम्हारी आती माँ।।
दिनभर करती कड़ी परिश्रम
फिर भी नही तुम थकती हो
बरसा कर तुम स्नेह की वर्षा
तुम मंद – मंद मुस्काती हो
सुनाकर तुम मधुर लोरियां
गोदी में मुझे समा लो माँ। जब याद तुम्हारी आती माँ।।
तेरी करुणा बरसाती आँखों ने
मुझे अभय का आशिष दिया
मन के हर सुनापन को
ममता की ठंडी छाँव दिया
अभिसिंचित कर नव सृजन को
कभी न मुरझाने दी हो माँ। जब याद तुम्हारी आती माँ।।
दिव्य अलौकिक रुप तुम्हारा
दुख-संताप निवारण करते है
तेरी बगीया के फूल सारे
जग को महकाते रहते है
अनजान शहर के विराने में
मुझे मीठी नींद सुलाओ माँ। जब याद तुम्हारी आती माँ।।
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