मेरी माँ
मेरी माँ
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तुम्हारे सान्निध्य को तरसती आज भी
बिलखती फिर स्वंय ही स्वंय को समझाती भी
तुम्हारी ममता की छाँव में बेखबर सी थी मैं
प्रेम से सिंचित पुष्प सी मैं आज
मुरझा सी गई हूँ बिन छाव आपकी
आज अपनी क्यारियों में उलझी सी
पर जानती हूँ तुम बिन जीना भी मुश्किल है
तुम हो तो मैं हूँ यही मानती थी पर आज क्यों
अकेली सी खड़ी दिखती हूँ मैं
तुमसे ही अस्तित्व है मेरा यही सच है
गहन अंधियारी रात में तुम से ही तो प्रेमप्रकाश है
तिमिर के डर से व्यथित बिटिया की रोशनी तुम
दूर से टिमटिमाते तारे की रोशनी सी हो
जो हरदम रोशनी का सम्बल देती है मुझे
संबल देती मेरी माँ आज भी साथ रहती है मेरे
मुश्किलों के चक्रव्यूह में आज भी कंधे पर हाथ होता माँ
संसार के कुचक्र से व्यथित होती मुझे
सम्भाल देती है यादे आपकी आज भी
मीठी लोरियों की स्वरलहरी सी यादे ताजा है पल पल
शक्ति देती मेरी माँ आज भी बेटी को
मेरे कण-कण में समाई माँ मेरी मुझ में
मेरे हर कर्म में परिलक्षित सी होती है माँ मेरी
उसी की प्रतिलिपि हूँ मै हु बहु उसका रूप
थपकियों और हिदायतों के पुलिंदों के साथ खड़ी हूँ आज ब
हर कदम प्रज्ज्वलित करती मेरी माँ मेरे लिए रोशनी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद