मेरी माँ
मेरी माँ
माँ…कहाँ गई, तुम्हारी सीधी साड़ी ;
बिन प्लेट…बिन पिन की साड़ी;
बिन पार्लर का , चमकता चेहरा ;
माँग में तेरा सिंदूर सजा है ;
चेहरा जैसा चाँद सा खिला है |
तुम बिन, उत्सव अधूरा लगता ;
घर-द्वार सब सूना लगता ;
माँ…कहाँ….गई…. ?
अब, क्यूँ… नहीं आती !
लोरी गा… मुझे, क्यूँ
नहीं सुलाती !!!
—-मिन्नी मिश्रा/पटना /
स्वरचित