मेरी मलम की माँग
हम भी खड़े रहे थे,
माँ, बेटी व प्यार की दहलीज मे।
कहा एक को चुन लो,
तुम अपने शब्द काव्य के सफर मे।
तो में वतन माँगता हूँ,
में शिशे का दिल व बदन माँगता हूँ।
वो मे हुनर जनता हूँ,
में टुकड़ों टुकड़ों में बिखरना माँगता हूँ।
टूटने पर वजूद न खोता,
काँच सा वह सफल जीवन माँगता हूँ।
देश का स्वाभिमान छुता,
में अपनी कलम से हमेशा वतन माँगता हूँ।
अनिल चौबिसा चित्तौड़गढ़
9829246588