मेरी मंजिल है कहाँ…??
मैं सपनों के ख्यालों में डूबता चला गया,
मुझे ना सपनों का शहर पता था और ना मंजिल का राश्ता,
मैं शौकों की ऊँगली भी ना पकड़ सका, और वक़्त आगे बढ़ता गया,
मेरी सोच पर अंकुश लगा पाया ना कोई,
पर माहौल ने मुझे झंझोड़ के रख दिया ¡¡
मुझे लोगों के तानो -बानो से हमेशा रहा गिला,
मैं चाहता बहुत था,पर मुझे थोड़ा भी ना मिला,
दुनिया की बात दूर, मैं अपनों में गुम हो चला,
टूटता गया हर दफा, जब भी किसी पे भरोसा किया…!!
मैं परेशाँ, दरबदर, यहाँ -वहाँ फिरता रहा…
ज़माने की ठोंकरो से जब मेरा मन टूटा
घर की ओर मैंने तब अपना रुख किया,
घर की चार दीवारी से और गुमनाम अंधेरे से…
खामोश रात से और बिना लफ्ज़ो की बात से…
मैंने सब से किया सवाल.. मेरी मंजिल है कहाँ…??
मेरे मन की अशांति का,, किस से है वास्ताँ,
पिता की शराब से या घर के हालात से,
दुनिया के शोर -शराबे से या खुद के टूटते ख़्वाबों से
मन मे उठे सवालों से या मेरे टूटते इरादों से…
किस से है वास्ताँ….
ऐ खुदा मुझको जरा बता…मेरी मंजिल है कहाँ…??
❤Love Ravi❤