मेरी भी सुनो
. नमन मंच साहित्य पीडिया
विषय मेरी भी सुनो
दिनांक. ६:६:२०२४
बचपन से जवानी तक बन निकम्मा
अपनो की नजर में आज कमल हुआ।
खेलने-कुदने की उम्र में खिलौना छुड़ा
कलम थमाना आज फैशन हुआ।
मां का,दुध परे बोर्न -विटा रख अम्मा
आज आधुनिकता की जलती चलम हुई ।
संस्कार पड़ी पोथी में धुल जमा देख
बदसलुक्की का जरिया मेरी शरम हुई ।
एक सिक्के बन पहलु ,अब रम्भा बन,
वो इस युग की सावित्री, देख मुझे – गरम हुयी।
शरम अपनी, रख बगल में
वो परी, निर्लज्जता की ,फैशन हुयी ।
नजर अपनी, साफ रख कर बहाना
वो किस सुन्दरता की पहचान हुयी।
पढ़ा-लिखा. मैं मातृ-भाषा का ज्ञानी.
संस्कारी पोथली में अपनो का अभिमान हुआ ।
निरक्षरता संग हंसी देख
मै उस जंगली संग यह जंगली उस चांद पर दाग हुआ l
मैं दाग अपने चांद की चांदनी में
गुल होकर इस धरा पर भी चकोर हुआ।
अमावस्या की बेला का कर इन्तजार
उसकी सुन्दरता का मुझे दिदार हुआ.
भरत कुमार सोलकी