“मेरी बेटी है नंदिनी”
मेरी कविता के हर पन्नों की,
संस्कार है बेटी,
मेरी कविता की,
अलंकार है बेटी।
मेरे कविता की,
श्रृंगार है बेटी,
क्या लिखूं मेरी भावनाओं की,
सार है बेटी।
मेरी हर कविता में,
रहती है मेरी बेटी,
मेरे हर शब्दों के पालने में,
खेलती है मेरी बेटी।
कभी कविताओं की गोद में, झुलाती हूँ उसको,
कभी कविताओ के बिस्तर पर सुलाती हुँ उसको।
कभी कविता के आंखों में दिखती है बेटी,
कभी कविता के शब्दो में बातें करती है बेटी।
मेरी नंदिनी मेरी, पूजा की थाल है,
मेरे धर्म में मेरे लिए, रोली लाल है,
कविता को रूप उसने ही दिया,
माँ ने दिया जो, वो मुझे भी मिला।
कविता ही क्या संसार को रचती है बेटी,
मेरे प्राणों मे क्या, संसार के आत्मा में हैं बेटी।
मेरी पुस्तक की,
स्वरमाला हैं बेटी,
मेरी जीत की,
जयमाला है बेटी।
रचती रहूं मैं ऐसे कविताओं की नई रचना,
इस शब्दज्योति को हरदम जलाये रखना।
किस्मत वाले हैं लोग जिन्हें बेटी नसीब होती है,
ये सच है उनके साथ देवी करीब होती है।
मैं भी एक बेटी हूं, जो आज लिख रही हुँ,
मैं खुद को नही एकता की नंदिनी को लिख रही हूं।
बेटी ही काली,
बेटी ही दुर्गा,
बेटी ही सीता,
बेटी ही राधा।
बेटी ही सरस्वती,
बेटी ही गौरी,
बेटी ही लक्ष्मी,
बेटी ही जननी।
बेटियों से ही आबाद है दुनिया,
बेटी न होती तो थम जाती दुनिया,
ना काव्य होता, ना कविता,
ना प्रकृति होती, ना सुंदरता।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव✍️
प्रयागराज