मेरी बहू
लघुकथा
शीर्षक – मेरी बहू
==================
हर जगह चर्चा का विषय एक ही होता मेरी बहू I रिश्तेदारी या पड़ोस में कोई आयोजन होता तो उसे जरूर बुलाया जाता l किसी भी काम में कोई कमी नहीं निकाल पाता l जब कोई काम अटक जाता तो याद आती मेरी बहू l अब तो मेरे माँ बापू भी उसकी तारीफ करते हुए न थकते l बजती पाजेब, खनकती चूड़ियाँ पल भर में किसी को अपनी और आकर्षित कर ले l मेरे हठीले माँ बापू को उसने अपनी सेवा भाव से अपना बना लिया वो भी हमेशा हमेशा के लिए l
आज वो हॉस्पिटल के जच्चा बच्चा वार्ड में लेती हुई मेरे घर को असीम खुशियाँ देने वाली थी l इतनी कठोर दिल की मेरी माँ भी उसकी असहनीय पीड़ा में नम आँखों से ढाढस बंधा रही थी l यह दृश्य देखकर में स्मृतियों में खोता चला गया…
एक दिन किसी अनजान नंबर से फोन आया l सामने एक लड़की थी…
“हेलो कौन”
” कल मेरे पापा आपके यहां आये थे l मैं उनकी बेटी हूँ l”
” बताइए मै आपकी क्या मदद कर सकता हूँ”
“आपको पढ़ा लिखा और समझदार व्यक्ति समझा इसलिए फोन किया मैंने l आप बता सकते हैं कि मेरे पापा की क्या गलती थी जो आपके घर में मेरे पापा की बेइज्जती की गई l क्या गरीब होना ही सबसे बड़ी गलती है l क्या दहेज किसी संस्कारी लड़की से ज्यादा बड़ा है l माफ करना साहब मै अपने पापा की गुरूर हूँ जिसमे कोई दाग नहीं जिसके लिए दहेज का सहारा लेना पड़े l”
उसकी बाते मेरे घर कर गई l मै समझ चुका था ये वही लड़की है जो मेरे परिवार का गुरुर बन सकती है l लेकिन मेरे माँ बापू पर दहेज का दानव हावी था l बहुत बार समझाने की कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ l मै क्या करता l फिर मुझे कुछ नहीं सूझा तो मैंने घर छोड़ने का निश्चय किया l इकलौते संतान घर छोड़े ये किसी को भी मंजूर नहीं हुआ l मेरी बात बन गयी और शादी हुई वो भी बिना दहेज के l समाज और रिश्तेदारों की कानाफूसी खूब हुई l बिना दहेज की शादी कुछ तो खोट होगी लड़के में l आखिर शर्मा जी के पास किस बात की कमी थी l और भी बाते तरह तरह की…l धीरे धीरे सब सामान्य हो गया l माँ बापू का दहेज का भूत भी उसकी निश्चल सेवा भाव ने उतार दिया l और बन गयी समाज और पूरे घर की लाड़ली… l
“बेटा में दादी बन गयी” – माँ ने कहा तो मेरी तन्द्रा टूटी l सामने माँ एक खूबसूरत परी को अपनी गोद में लिए थी l पापा ने जेब से कुछ नोट निकाले और नौछवार कर मिठाई के लिये बांट दिये l सामने लेती वो मुस्कुरा रही थी अपनी अजेय जीत पर l सच में आज मेरे हँसते खेलते परिवार के सामने दहेज का दानव बहुत ही ठिगना नजर आ रहा था l
राघव दुवे ‘रघु’