मेरी फितरत ही बुरी है
न नियत ही बुरी है मेरी न हसरत ही बुरी है
पर लोग समझते हैं मेरी फितरत ही बुरी है
पर लोग समझते हैं………………
मैं बोलता हूँ सच जो होता है थोड़ा कड़वा
पर लोग समझते हैं मेरी फितरत ही बुरी है
पर लोग समझते हैं……………..
मैं ही अलग नहीं यहाँ हर आदमी अलग है
पर लोग समझते हैं मेरी फितरत ही बुरी है
पर लोग समझते हैं……………..
मैं पत्थरों के बदले इंसानियत को पूजता हूँ
पर लोग समझते हैं मेरी फितरत ही बुरी है
पर लोग समझते हैं……………..
मैं सुनता हूँ सभी की करता ‘विनोद’ मन की
पर लोग समझते हैं मेरी फितरत ही बुरी है
पर लोग समझते हैं……………..
स्वरचित
( विनोद चौहान )