प्रिय हिंदी
प्रिय तुम जब पास ना होती
तब ना ये मन की बात होती!
अगर कभी कह भी देता तो
पर वो बात बिना बिसात होती!!
भर देता भाव भाषा में
जब भी तुम मेरे पास होती!
तब मेरे स्वरों में लावण्य
वाणी में मधुर-मिठास होती!!
होता जताना अपनापन
और शिष्टता जतानी होती!
छूना होता अंतर्मन को
तब कौन तुम्हारी सानी होती!!
सम्मान मैं भी पा जाता
जब तुम संग शालीन होती!
तेरे नवरंग-रुप शैली से
मेरी बातें भी समकालीन होती!!
सुख-संतोष के क्षणों को
तुम सहज ही व्यक्त कर देती!
अपने शब्द, सौंदर्य-अलंकारों से
कथ्य मेरा सशक्त कर देती!!
अभिव्यक्ति के जादू से
शब्दों में नई उड़ान भर देती!
संगीत बन मेरी वाणी
कानों में मधुरस भर देती!!
दुख-करुणा में भी तुम
पीड़ा गहरी अनुभव कराती!
निस्तब्ध नीरव-निर्वात में भी
तुम कर्णप्रिय कलरव कराती!!
तुम परिपूर्ण परिलक्षित
करती हर हृदय भाव को!
आत्मसात कर लेती हो
समय के हर बदलाव को!!
प्रणवाक्षर-अक्षर से पहले
तुम्हीं से सुनी मां की लोरी!
आज बनी हो सम्पर्क संप्रेषण
एकता-अखंडता की डोरी!!
विशद-शब्दकोष में गंगा जान्हवी
तो यमुना बन जाती कालिंदी!
बहुभाषा-बोली की धाराओं से
मिल महानदी बन जाती हिंदी!!
शब्द-विन्यास व्याकरण में
है सहज-सरल सशक्त हिंदी!
चिता चिंता में बदल देती
बस एक बिंदु सी बिंदी!!
सांझ-सवेरे अभिवादन हमारे
जयहिंद जयहिंद जयहिंद है!
पर दिनभर के वादन में
जयहिंदी जयहिंदी जयहिंदी है!!
~०~
हिंदी दिवस की शुभकामनाएं।
१४, सितंबर ©जीवनसवारो