मेरी पावन मधुशाला
मेरी पावन मधुशाला
हे मधुशाला के आँसू तू,बन जा आज सुधा हाला;
टपक- टपक कर बूँद-बूँद से भरते जा सबका प्याला;
साकी बनकर दीन-हीन की,खोज-खबर लेते रहना;
घोर निराशा की दुनिया की,बन जा पावन मधुशाला।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी-221405