मेरी नज़रें हैं झुकी अब तो गिला रहने दो
मेरी नज़रें हैं झुकी अब तो गिला रहने दो
दूरियाँ इतनी बढ़ीं और सज़ा रहने दो
कोई किस्मत के लिखे को न मिटा पाया है
जो भी किस्मत में लिखा उसको लिखा रहने दो
इस उजाले की ज़माने को ज़रूरत है सदा
दीप उल्फ़त का जलाया है जला रहने दो
रोग ये जिस्म का होता तो दवा लगती भी
अब दुआ कर लो मगर और दवा रहने दो
मुझको मालूम है वो मुझसे ख़फ़ा क्यूँकर है
उसकी ग़लती जो बताई है ख़फ़ा रहने दो
बेवफ़ा की तो ख़ुशामद न किया करता हूँ
जा के दुश्मन से मिला है तो मिला रहने दो
सोच लूँगा कि समुन्दर में बहा दी नेकी
ग़र न मिलता है तो नेकी का सिला रहने दो
सिर्फ़ रहने दो बुराई को जुदा अपने से
है सही बात कि किरदार भला रहने दो
इल्तिजा सबसे है ‘आनन्द’ की इतनी सी फ़क़त
हो गई ग़र है ख़ता ज़िक्रे ख़ता रहने दो
डॉ आनन्द किशोर