मेरी दुनिया मेरे पापा
नतमस्तक हो करता विचार
छत बिन न होवे कोई दिवार,
स्तंभों सा अडिग सहे हर वार,
संरचना गजब स्तंभ तू ही, तू ही दिवार,
मौलिक अंतर बस इतना वो निराकार तू साकार,
करूँ वंदना मैं तेरी बारंबार,
हे पिता जो भी हूँ, तेरा उपकार,
आंसू न लाऊंगा,न होऊंगा तार तार,
मेरे राम मेरे कृष्ण हो,भाव ला त्यक्त सब विकार॥
जो बांटा तुमने अविरल प्रेम की धार,
निश्छल कर मन अब करूँगा भक्ति अपार,
हे पिता जो भी हूँ, तेरा उपकार, ॥