मेरी डायरी के पन्नों मे
मेरी डायरी के पन्नों मे
तुम पूरे पाँच वर्ष के हो चुके हो
वो उम्र जब बच्चा माँ की गोद से बाहर
सारी दुनिया को मुट्ठी में पकड़ना चाहता है ।
आकर्षित करती जिसे सब चमक-दमक,
माँ निरख रही होती है सूनी गोद
और दूर दौड़ते बच्चे की आँखें
कि कितनी बार पीछे मुड़कर
उसने माँ की ओर निहारा।
इन पाँच वर्षों का हर पल
उसका बच्चे से ही जुड़ा रहा।
कर्त्तव्य भले ही सारे निभाये गये
किन्तु केन्द्र में बच्चा
बस परिधि बनकर माँ घूमती रहती।
माँ खुश है बच्चे को ऐसे दौड़ते और
दुनिया को अपने कदमों में नापते देख
किन्तु बस डर जाती है कभी-कभी
कि ज्यादा दूरी, मोह के इन
महीन धागों को न तोड़ दे ।