मेरी डायरी।
रोज़-रोज़ तो लिख नहीं पाता,
पर दूर मैं तुमसे रह नहीं पाता,
साझा करता तुमसे मैं,
अपनी हर एक सोच,
मानो जैसे हो जाता,
हल्का दिल का बोझ,
तुम तो मेरी राज़दार हो ऐसी,
कि बातें जानती सारी हो,
हिस्सा हो मेरे जीवन का,
डायरी तुम बहुत प्यारी हो,
रिश्ता है तुमसे बहुत ही खास,
बहुत अच्छी मेरी तुम साथी हो,
जो कुछ भी मैं कहता तुम से,
चुपचाप तुम सुनती जाती हो,
सोचता हूं कि तुमको मैं,
सखी कहूं या सहेली,
जैसे ही तुम पर कलम मैं रखता,
सुलझ जाती जीवन की हर पहेली,
जानता हूं कि तुम पर लिखे,
कुछ पन्ने अभी हैं अधूरे,
विश्वास रखो मुझ पर कि एक दिन,
वो किस्से भी हो जाएंगे पूरे।
कवि-अंबर श्रीवास्तव