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4 Jul 2023 · 1 min read

मेरी चाहत

न चाहत ये कि
भीड़ मे अलग नज़र आऊं….
साबित किसी को
क्यों करुं मैं….
इतना काफी है कि
मैं खुद से नज़र मिलाऊं…
मेरा क़लाम मेरा आईना है
किस ग़र्ज़ इस पे इतराऊं….
फ़कत आरज़ू इतनी
दिल किसी का न दुखे…
किसी लब को हँसी दे पाऊं….
दिली सुकून के लिए
लिखती हूँ जज़्बात….
कोई तमन्ना नही
कि ईनाम पाऊं….
तेरा सजदा,बंदगी तेरी
तेरी रज़ा ही इनायत है तेरी …
फितरत मेरी ख़ामोशी खुदा
मेरा पयाम इबादत है तेरी ….
मेरे दामन की जुस्तजू इतनी
तेरी रहमत से नवाज़ी जाऊं….

नम्रता सरन “सोना”
भोपाल मध्यप्रदेश

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