मेरी ख्वाहिश
मैं कभी नहीं चाहूंगा
कि सत्य की सूखी टहनियों से लटक
तुम अपनी जान दे दो
कि नैतिकता का फीका शर्बत पी
तुम अपने जीवन को बेस्वाद बना लो
कि जब नापाक आततायी तुम्हें घेर कर मारें
तुम्हारे पास फल काटॅने वाला चाकू भी न हो
कभी नहीं चाहूंगा यह कहना
कि बगैर किसी ठोस आधार के हवा में
तुम आसमान छूने की सीढियां बना लो
बगैर खाद पानी के
तुम्हारी बुनियाद मजबूत हो
कि भूखे पेट तुम राष्ट्र के गीत गाए जाओ
मैं चाहता हूँ
तुम सत्य को जानो
एक बच्चे की तरह सत्य की परवरिश करो
कि वह बढे और वटवृक्ष बन जाये
तुम्हारी बुनियाद मजबूत हो
नये परिवर्तन को स्वीकारने का साहस हो
समय को पहचान सको
कि लोग आस्तीन में खंजर छिपाते है
और मुस्कराहट के पीछे
नफरत छिपी रहती है .