*मेरी कविता कहती है क्या*
मेरी कविता कहती है क्या
अंतर्मन का कोना करता पुकार,
भावनाओं में बहकर करूं शुरुआत।
कविताएं लिखूं और बनाऊं,
अपने मन की भावनाओं को,
यूं बाहर लाऊ,
करते हैं परेशान मुझे मेरी कविताएं।
कहते है मुझसे,
उठो जागो और लिखो मुझको,
रख कागज़ और कलम,
करदे मेरा भी जनम।
अपने शब्दों को,
ऊकेरते हुए मेरी रचना करो।
मेरी कविता कहती है मुझे
मेरा जन्म स्थान बनाओ,
मुझे इस जग को सुनाओ।
नहीं रहना चाहती हूं,
मैं तुम्हारे अंतर मन के कोने में।
मैं भी बहना चाहती हूं,
सुंदर जग के हर कोने में।
रचनाकार
कृष्णा मानसी
19/04/2024
बिलासपुर, (छत्तीसगढ़)