मेरी कली
उसकी यादों की खुशबू से,
महकती है बगिया मेरी,
उसका ही ज़िक़्र रहता है,
अब हर गुफ़्तगू में मेरी,
उसके बिन गुज़र जातीं हैं,
मेरी रातें तो तन्हा,
पर ये खयाल आता है,
कटेगी कैसे तन्हा उम्र मेरी,
कि आज भी दौड़ता है रगों में,
जूनून-ए-लहू उसके इश्क़ का,
कि आज भी जिन्दा है,
उसे पाने की उम्मीद मेरी,
मैं सोचता हूँ अक्सर,
ये जाग कर रातों में,
यूँ उदास हैं ये दिन उस बिन,
ख़फ़ा सी हैं रातें मेरी,
कि क्या मंजर होगा उस वक़्त,
लेगी थाम वो हाथ किसी और का,
सिसकती हुई, अनमनी-सी,
जब किसी और की हो जायेगी कली मेरी!!