मेरी कलम
बहुत दिनों के बाद मेरी कलम बोल रही है,
मेरे सुप्त विचारों को धीरे से यह खोल रही है।
खोई खोई रहती थी मैं अपने ही ख्यालों में,
मेरे उन ख्यालों में वो जैसे मिश्री घोल रही है।
पिरो रही है संयम से मेरे हर एक शब्दों को,
कविता रूपी माला में सौंदर्य को टटोल रही है।
लेती हैं भावनाएं मेरे मन में अनगिनत हिलोरें
भावों के अन्तर्द्वन्द में मेरे संग वो डोल रही है।
बनके मेरी प्रिय सहेली,सुलझाती हरएक पहेली
मेरी कलम हमेशा ही मुझको अनमोल रही है।
By:Dr Swati Gupta