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10 Nov 2018 · 1 min read

मेरी कलम

रुक पड़ी कलम
आज लिखते-लिखते
कई बार
आखिर क्यों
सोचता रहा !

शायद !
न सुहाता हो
कलम को मेरा लिखना
जैसे ढेरों को पसंद नहीं।

कर भी क्या पाया
आज तलक
कहाँ जगा पाया
राष्ट्रभक्ति,समर्पण और
राष्ट्रवादी सोच और विचारधारा।

कहां मिटा पाया
जातीय द्वेष-घृणा और
आम जनता का दुःख
आज भी पहेली है
समरस समाज की परिकल्पना !

फिर
करता रहा किसका मंगलगान
आज तलक ?
स्थितियां जस की तस है
और वैसे ही हैं लोग !

ऐसे में
जरूरी ही है
बगावत पर उतर आना
कलम का
निहायत जरूरी !

फिर क्यो डर जाती ये कलम
क्यो रुक जाती चलने को
शायद,सहमना डरना इसकी नियति है
सत्ता के गलियारों से!

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 435 Views
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