” मेरी ओकात क्या”
” मेरी ओकात क्या”
समय के फेर बदल में मैं सैकण्ड की सुई टिक टिक कर टिक रहा घण्टा में आसानी से प्यादे के संग में बेखौफ होकर बिक रहा
देख मुझे दिवार पर अपनी सुकळ वो चैन की सांस लेते है।.। में मिनट संग सैकण्ड को देख अपनी, नकल में, दिदार की आश लेते हैं।
मैं पूल समय सीमा में बन्ध
घडी साम्राज्य में मेरी ओकाल क्या ?
हाँ। संगीत के तरानो के विरह प्रसाद मे रहता हूँ
कारण घण्टो सें निहारते रहे तो प्रेम में बिका रहता है।
यह प्रेम प्रसंग ही, मुझे अपनी उन निगाहों में झलक दिखाता है वरना घष्टो बीत जाते विरह में तन्हाईयो की याद भनक उसे अपनी लगाती है।
अब घण्टा कहता है,
अपनी प्रजा से आप के बिगेर मेरी औकात क्या ?