मेरी उलझनें…
बहुत दुःख मिले हैं मुझे,
तेरी सल्तनत में,
मैं ज़िंदा हूँ यहाँ,
ज़िंदा रहने की उलझन में ।
हिज़ाब से निकल कर,
बेरी तू आ सामने,
साँस है अभी बाक़ी,
देख मेरे उथले बदन में ।
मैं राह का पत्थर तो नहीं,
जिसे तू मार दे ठोकर,
मैं तो ऐसा फूल हूँ ग़ालिब,
मिट जाऊँगा मग़र खुशबू रहेगी चमन में ।
मिटा दे तू मेरी हस्ती,
वो दिलेरी है तुझमें कहाँ,
गिरा के देख ले दो बूँद रक्त की,
“आघात” क़सम तू लिपट जायेगा कफ़न में ।