मेरी इच्छा
मेरी इच्छा
मुझे कुछ संगीत की लहरिया सुनाए
मुझे प्रकृति की अनुपम छटाओं में कोई गुनगुनाए ।।
यह पते ,रस्सी खीचकर ढपली बजाकर मुझे सुनाए ,,
संशय की खिड़किया खोलकर मुझे तो सुनाए ।
आकाश के आंगन में यह बयार वंशी लेकर आएं ओर ,
रोमांच करने वाली प्रकृति की निराली तान सुनाए ।
मुझे संगीत की लहरिया ,,,,,,,,,,
प्रकृति की ,,,,,,,।।
निराले झरने चम चम करके आए हरि हरि घास ओढ़नी में लहलहाए ।
शीतलता की छाव में पपीहा ,कोयल सी सस्वर राग अलाप पाए ।
मुझे संगीत की लहरिया ,,,,
प्रकृति की ,,,,,,,।।
पहाड़े ,नदिया ,झरने आए
ओर मधुर गान में नृत्य कर ताली बजाए ।
इस गगन ,अरण्य में प्रकृति की
बन्द चक्षु से निराली स्वर ताल को अंर्तमन से इच्छा के कान से कोई आकर मुझे सुनाए ।
मुझे संगीत की ।।।
प्रकृति की ,,,
मुझे मनन ,चिंतन की अभिलाषा बताए
जीवन की डोर की परिभाषा समझाए ।
रोटी ,कपड़ा ,मकान की इच्छा जताए
मुझे मानव जीवन की जीने की परीक्षा बताए ।
मुझे संगीत की ,,
प्रकृति ,,,,।।
प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित कॉपीरिर्ट कविता
दिनांक 5/5/2018