मेरी आकांक्षा
सुन संस्कृति तुही है मेरी साक्षी,
है तेरी माँ महत्वाकांक्षी ।
तु ही पूर्ण करेगी वह उद्देश्य,
था जीवन का जो अवशेष ।
तुझे शिखर पर देखने की जिज्ञासा,
करो पूर्ण तू ही, कुंठित अभिलाषा ।
तु है जीवन की अच्युत ज्योति
प्यारी है जैसे सिप की मोती ।
तू कर नई संस्कृति का सृजन,
हर्षित होंगे हर कलुषित मन।
जहाँ-जहाँ पड़े तेरे कर्मठ चरण,
वहीं ससमृद्ध का स्फूटित हो सुमन ।
तेरी गरिमा देखे सहस्राक्षी,
है तेरी माँ महत्वाकांक्षी ।
उमा झा