मेरी आँख वहाँ रोती है
मेरी आँख वहाँ रोती है ।
विस्थापित-सा जीवन जीकर
कर्कश बोलों का विष पीकर
अपने ही जर्जर कंधों पर
ममता लाश जहाँ ढोती है ।
मेरी आँख वहाँ रोती है ।
आग पेट की शम करने को
आँतें सूखी नम करने को
दुख का पर्वत रख छाती पर
तरुणी लाज जहाँ खोती है ।
मेरी आँख वहाँ रोती है ।
न्याय धर्म को धता बताकर
रिश्वत को निज अंग लगाकर
जिस्म चाटने वाले मुँह से
लॉ की बात जहाँ होती है ।
मेरी आँख वहाँ रोती है ।
०००
अशोक दीप
जयपुर