मेरी आँखे
बोझ मेरे सपनो का
मेरी आँखो से भी सहा न गया
थक गई वह बेचारी भी
मेरे सपनो को बुनते-बुनते
आखिर टूट गया एक दिन
उसका भी सब्र का बाँध
फिर रोक न पाई वह
आँखो से आँसु को बहने से।
मैने उसको कितना समझाया
मत हो तुम इतना अधीर
रोक ले तुम आँसु को बहने से
रख तुम मन मै थोड़ा सा धीर
एक दिन तेरे सारे सपने पूरे होगे
क्यों हो गई तुम इतनी जल्दी अधीर।
~अनामिका