कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
कविता: मेरी अभिलाषा- उपवन बनना चाहता हूं।
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हल्का सा मैं हवा का झोखा, तूफान बनना चाहता हूं,
छोटे छोटे पैरों से मैं, शिखर पर चढ़ना चाहता हूं।
महके जिससे दुनियां सारी, वो गुलशन बनना चाहता हूं,
नन्हा सा मैं पौधा हूँ, उपवन बनना चाहता हूं।।
मानव मानव से प्यार करे, गले मिले सत्कार करे,
जीवन होता बड़ा अनमोल, कर्मो से उद्धार करे।
दिलों से नफरत को मिटाकर, चाहत भरना चाहता हूं।
नन्हा सा मैं पौधा हूं, उपवन बनना चाहता हूं।।
सूरज चमके चंदा चमके, नील गगन में तारे चमके,
नदी पहाड़ और झरने धरा पर आए स्वर्ग बनके।
नीर बचाकर पेड़ लगाकर, हरियाली करना चाहता हूं।।
नन्हा सा मैं पौधा हूं, उपवन बनना चाहता हूं।।
शिक्षा उन्नति का आधार, पुस्तकें ज्ञान का भंडार,
जो भी पढ़ता आगे बढ़ता, सोचो समझो करो विचार।
कलम स्याही हाथ मे लेकर, पढना लिखना चाहता हूं।।
नन्हा सा मैं पौधा हूँ, उपवन बनना चाहता हूं।।
उठे जागे कुछ नया करे, जीवों पर हम दया करें,
समय का पहिया चलता रहता, मन के भाव बयां करें।
दे दूं अपना जीवन सारा, मैं शिक्षक बनना चाहता हूं।।
नन्हा सा मैं पौधा हूं, उपवन बनना चाहता हूं।।
नाम मेरा राजेश है, अर्जुन मैं कहलाता हूँ,
शिक्षा की गांडीव से, मैं शब्दों के तीर चलाता हूँ,
शिक्षा ही दर्पण है, मैं स्वम् दर्पण बनना चाहता हूँ।।
नन्हा सा मैं पौधा हूं, उपवन बनना चाहता हूं।।
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स्वरचित कविता 📝
✍️रचनाकार:
राजेश कुमार अर्जुन