मेरीजगत में हेठी हुई है
सुनों सुनों ओ प्रियतमा, जीवन लग रहा सर्द
फिर घर में बेटी हुई
बढ़ा मेरा सिर दर्द|
मुझे गलत मत समझना
मै तो हूँ मजबूर|
किससे अपनी व्यथा कहूँ,
हो गया जग से दूर|
मेरी जगत क्या हेठी हुई है
कि फिर घर में बेटी हुई है
माता है रोती पिता घर में ऐंठे,
उपहास करने हर एक लोग बैठे|
सिकंदर नहीं कोई पैदा हुआ|
संकट में मेरा ओहदा हुआ है|
तू माँ है मरम को समेटी हुई है
सुघर सुंदर बेटी लेटी हुई है
समझाऊँ कैसे जगत को ये बातें
बड़ी ही सुखद होती
दिन वो, वो रातें|
जिस पल में
सुहृद प्यारी बेटी हुई है
फिरघर में बेटी हुई है
दुखद है जगत की ये रीति पुरानी|
सम्मानित है दादी
अपमानित है नानी
बिल्ली है माँसी और बंदर है मामा|
किसने पहनाया इन शब्दों का जामा|
जितनी सम्मानित है
बुआ जग में
उतनी उपहासित क्यों
माँसी है जग में
इसी पर टिकाना है
चर्चा की बाते
सुधर जाये जग की
ये रीति ये रिवाजे
बेटे की मां हो
या बेटी की माँ हो
दोनों के सम्मान का ये जहाँ हो
बिटिया की माँ क्यों घसीटी गई है, कि
फिर घर में बेटी हुई है|
पिता का भी देखो है
अपमान कितना
बेटे के पितु का चरण
पूजे जितना
पगड़ी रखे और चरण रज पखारे
पिता तो है दोनों
क्यों ना समझे
प्यारे|
इसी से येमहसूस हेठी हुई है
कि फिर घर में बेटी हुई है
डा पूनम श्रीवास्तव (वाणी)