मेरा है आशियाँ जो जल रहा है…
ज़नाज़ा हसरतों का चल रहा है
जवानी का जो सूरज ढल रहा है।
कहीं माँ घर से बेघर हो रही जब
छलकता दूध का आंचल रहा है।
गुमां दौलत का जिसको था ज़ियादा
वही अब हाथ देखो मल रहा है।
पहेली बन चुकी यह जिंदगी अब
नज़र से हल सदा ओझल रहा है।
दुआ इस शख़्स को देते रहो बस
हमेशा आपका कायल रहा है।
तक़ाज़ा है उमर का आज लेकिन
अभी सिक्का मेरा ही चल रहा है।
शज़र को देख चीखा इक “परिंदा”
मेरा है आशियाँ जो जल रहा है।
पंकज शर्मा “परिंदा”