“मेरा हिस्सा”
हद से ज्यादा नहीं
उसके हिस्से का आधा देना
दबी सिकुची सी दिखे कहीं
कुछ कर दिखाने का इरादा देना…
रंग “गुलाबी” से “खाखी” हो गया
अब उसकी पहचान का
इस रंग पर कोई दाग न लगे
पक्का सा एक ऐसा वादा देना..
न किया है कोई अहसान तूने
न ही वो किसी पर करती है
“रिश्तों” की “आबरू” बनी रहे
बस इतना सा “सम्मान” देना…
“दायरों” में बंधी वो “जात” न रहे
कोई “गालियों” में बके वो बात न रहे
खुद की लड़ाई खुद लड़ सके
उसे उसका वो “आत्मविश्वास” देना
न करना तड़क भड़क सा कुछ खास
उसे हो बस उसके वज़ूद का अहसास
वो मुस्कुराती रहे दिन भर दिल से
एक दिन ऐसा “सीधा साधा” देना..
“इंदु रिंकी वर्मा”©