‘ मेरा हाल सोडियम-सा ’ [ लम्बी तेवरी, तेवर-शतक ] +रमेशराज
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इस निजाम ने जन कूटा
हर मन दुःख से भरा लेखनी । 1
गर्दन भले रखा आरा
सच बोलूंगा सदा लेखनी ।
मैंने हँस-हँस जहर पिया
मैं ‘मीरा-सा’ रहा लेखनी । 3
मेरा स्वर कुछ बुझा-बुझा
मैं मुफलिस की सदा लेखनी । 4
मेरे हिस्से में पिंजरा
तड़पे मन का ‘सुआ’ लेखनी । 5
मेरा ‘पर’ जब-जब बाँधा
आसमान को तका लेखनी । 6
मन के भीतर घाव हुआ
मैं दर्दों से भरा लेखनी । 7
आदमखोरों से लड़ना
तुझको चाकू बना लेखनी । 8
शब्द-शब्द आग जैसा
कविता में जो रखा लेखनी । 9
छल सरपंच बना बैठा
इस पै अँगुली उठा लेखनी । 10
जो सोया भूखा-प्यासा
उसको रोटी जुटा लेखनी । 11
हर मन अंगारे जैसा
तू दे थोड़ी हवा लेखनी । 12
इसका दम्भ तोड़ देना
ये है खूनी किला लेखनी । 13
तुझसे जनमों का नाता
तू मेरी चिरसखा लेखनी । 14
मुझको क्रान्ति-गीत गाना
मैं शायर सिरफिरा लेखनी । 15
मुझमें क्रान्ति-भरा किस्सा
मुझको आगे बढ़ा लेखनी । 16
मुझमें डाइनामाइट-सा
इक दिन दूंगा दिखा लेखनी । 17
सच हर युग ऐसा धागा
जिसने हर दुःख सिया लेखनी । 18
कुम्भकरण जैसा सोया
तू विरोध को जगा लेखनी । 19
मुझ में जोश तोप जैसा
तू जुल्मी को उड़ा लेखनी । 20
‘सोच’ आग-सा धधक रहा
मन कंचन-सा तपा लेखनी । 21
ये ख़याल मन उभर रहा
मैं रोटी, तू तवा लेखनी । 22
जिबह कबूतर खुशियों का
पंखों को फड़फड़ा लेखनी । 23
सिसके निश-दिन मानवता
शेष नहीं कहकहा लेखनी । 24
हर कोई बस कायर-सा
बार-बार ये लगा लेखनी । 25
यहाँ बोलबाला छल का
सबने सबको ठगा लेखनी । 26
खामोशी से कब टूटा
शोषण का सिलसिला लेखनी । 27
खल पल-पल कर जुल्म रहा
इसके चाँटे जमा लेखनी । 28
घर के आगे ‘क्रान्ति’ लिखा
मेरा इतना पता लेखनी । 29
जिन पाँवों में कम्पन-सा
बल दे, कर दे खड़ा लेखनी । 30
‘झिंगुरी’ को गाली देता
क्रोधित ‘होरी’ मिला लेखनी । 31
मैंने ‘गोबर’ को देखा
नक्सलवादी हुआ लेखनी । 32
‘धनिया’ ने ‘दाता’ पीटा
दिया मजा है चखा लेखनी । 33
खूनी उत्सव रोज हुआ
ये कैसी है प्रथा लेखनी । 34
घुलता साँसों में विष-सा
कैसी है ये हवा लेखनी । 35
महज पतन की ही चर्चा
सामाजिक-दुर्दशा लेखनी । 36
जन चिल्ला-चिल्ला हारा
बहरों की थी सभा लेखनी । 37
अपने को नेता कहता
जो साजिश में लगा लेखनी । 38
वही आज संसद पहुँचा
जो गुण्डों का सगा लेखनी । 39
सुख तो एक अदद लगता
दर्द हुआ सौ गुना लेखनी । 40
धर्मराज फिर से खेला
आदर्शों का जुआ लेखनी । 41
जो मक्कार और झूठा
वो ही हर युग पुजा लेखनी । 42
राजा रसगुल्ले खाता
भूखी है पर प्रजा लेखनी । 43
जज़्बातों से वो खेला
सबका बनकर सगा लेखनी । 44
सुन वसंत तब ही आया
पात-पात जब गिरा लेखनी । 45
मुझमें ‘दुःख’ ऐसे तनता
मैं फोड़े-सा पका लेखनी । 46
कैसे कह दूँ अंगारा
जो भीतर तक बुझा लेखनी । 47
मेरा हाल ‘सोडियम’-सा
मैं पानी में जला लेखनी । 48
भले आज तम का जल्वा
लेकिन ये कब टिका लेखनी । 49
कैसा नाटक रचा हुआ
लोग रहे सच छुपा लेखनी । 50
उसका अभिनंदन करना
जो अपने बल उठा लेखनी । 51
जन के लिये न्याय बहरा
चीख-चीख कर बता लेखनी । 52
जिनको भी अपना समझा
वे करते सब दगा लेखनी । 53
अनाचार से नित लड़ना
फड़क रही हैं भुजा लेखनी । 54
अंधकार कुछ तो टूटा
बार-बार ये लगा लेखनी । 55
तू चलती, लगता चलता
साँसों का सिलसिला लेखनी । 56
जीवन-भर संघर्ष किया
मैं दर्दों में जिया लेखनी । 57
और नहीं जग में तुझ-सा
जो दे उत्तर सुझा लेखनी । 58
कैसे सत्य कहा जाता
सीख तुझी से लिया लेखनी । 59
उन हाथों में अब छाला
कल थी जिन पै हिना लेखनी । 60
चक्रब्यूह ये प्रश्नों का
अभिमन्यु मैं, घिरा लेखनी । 61
आकर मन जो दर्द बसा
कब टाले से टला लेखनी । 62
मन तहखानों में पहुँचा
जब भी सीढ़ी चढ़ा लेखनी । 63
टुकड़े-टुकड़े महज रखा
नेता ने सच सदा लेखनी । 64
छल स्वागत में खड़ा मिला
जिस-जिस द्वारे गया लेखनी । 65
जिसमें प्रभा-भरा जज़्बा
वह हर दीपक बुझा लेखनी । 66
जिसको सच का नभ छूना
पाकर खुश है गुफा लेखनी । 67
‘बादल देगा जल’ चर्चा
मौसम फिर नम हुआ लेखनी । 68
पग मेरा अंगद जैसा
अड़ा जहाँ, कब डिगा लेखनी । 69
प्रस्तुत उनको ही करना
जिन शब्दों में प्रभा लेखनी । 70
मुंसिफ के हाथों देखा
अदालतों में छुरा लेखनी । 71
शान्तिदूत खुद को कहता
हमें खून वो नहा लेखनी । 72
सबको पंगु बना बैठा
ये पश्चिम का नशा लेखनी । 73
न्याय-हेतु थाने जाना
जो चोरों का सगा लेखनी । 74
अनाचार बनकर बैठा
ईमानों का सखा लेखनी । 75
सच जब भी शूली लटका
‘भगत सिंह’-सा हँसा लेखनी । 76
मल्टीनेशन जाल बिछा
जन कपोत-सा फँसा लेखनी । 77
घर-घर में पूजा जाता
सुन बिनलौनी-मठा लेखनी । 78
नयी सभ्यता का पिंजरा
इसमें खुश हर सुआ लेखनी । 79
जिसमें दम सबका घुटता
भाती वो ही हवा लेखनी । 80
मृग जैसा मन भटक रहा
ये पश्चिम की तृषा लेखनी । 81
पल्लू थाम गाँव पहुँचा
महानगर का नशा लेखनी । 82
जिधर झूठ का भार रखा
उधर झुकी है तुला लेखनी । 83
आज आस्था पर हमला
मूल्य धर्म का गिरा लेखनी । 84
देव-देव सहमा-सहमा
असुर लूटते मजा लेखनी । 85
अब रामों सँग सूपनखा
त्यागी इनने सिया लेखनी । 86
आज कायरों कर गीता
अजब देश में हवा लेखनी । 87
चीरहरण खुद कर डाला
द्रौपदि अब बेहया लेखनी । 88
मनमेाहन गद्दी बैठा
किन्तु कंस-सा लगा लेखनी । 89
जहाँ नाचती मर्यादा
डिस्को का क्लब खुला लेखनी । 90
सबको लूट बना दाता
जो मंचों पर दिखा लेखनी । 91
मानव जब मति से अंधा
क्या कर लेगा दीया लेखनी । 92
हमने बगुलों को पूजा
हंस उपेक्षित हुआ लेखनी । 93
छल का रूप साधु जैसा
तिलक! चीमटा! जटा! लेखनी । 94
वह जो वैरागी दिखता
माया की लालसा लेखनी । 95
नदी निकट बगुला बैठा
रूप भगत का बना लेखनी । 96
जनहित में तेवर बदला
चीख नहीं है वृथा लेखनी । 97
हर तेवर आक्रोश-भरा
यह सिस्टम नित खला लेखनी । 98
इन तेवरियों से मिलता
असंतोष का पता लेखनी । 99
तेवर-तेवर अब तीखा
जन-जन की है व्यथा लेखनी । 100
मन ‘विरोध’ से भरा हुआ
खल के प्रति अति घृणा लेखनी । 101
पूछ न आज तेवरी क्या ?
बनी अग्नि की ऋचा लेखनी । 102
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+रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001
Mo.-9634551630