मेरा हाथ खाली क्यों है !
यह बात होली के त्यौहार से एक-दो दिन पहले की है जब मैं शहर के मुख्य बाजार में स्थित किसी परचूनी वाले किराना स्टोर पर कुछ सामान लेने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहा था। उस दिन त्योहार की वजह से लालाजी ने अपनी दुकान का काउंटर थोड़ा आगे बढ़ा कर एक तखत डालकर लगा रखा था और खुद एक मसनद पर विराजमान थे , लालाजी सेहतमंद थे और अपने मोटापे की वजह से पूरी पालथी नहीं मार पा रहे थे तथा अपने दोनों तलवों को नमस्ते की मुद्रा में आपस में सटाए और घुटने फैलाए बैठे थे तभी उन्होंने अपने दोनों हाथों की कोहनी को अपने घुटनों पर रख कर और हथेलियों को नीचे झुका अपने मुंह को ऊपर उठाकर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगे
मेरा हाथ खाली क्यों है ?
मेरा हाथ खाली क्यों है ?
मुझे समझ में नहीं आया कि ये लाल जी रह रह कर बैचैन हो कर शून्य में निहारते हुए इस प्रकार क्यों शोर मचा रहे हैं , तभी मैंने देखा उनके पीछे जो चार-पांच लड़के दुकान पर खड़े थे उनमें से एक ने तुरंत उनके हाथ में एक पॉलिथीन की थैली पकड़ा दी , थैली पकड़ते ही वे अपने सामने रखी बड़ी-बड़ी परातों में से , जिनमें मैदा सूजी और बूरे का ढेर भरा हुआ था उसमें से सामान लेकर झटके खा खा कर तौलने लगे । चूंकि मुझे उनकी इस हरकत हो देखने में मज़ा आ रहा था अतः मैं वहीं खड़ा होकर उनकी कारगुजारी देखते हुए अपनी बारी आने का इंतजार करने लगा । मैंने देखा जैसे ही लालाजी एक थैली में मैदा बूरा या सूजी तौलते थे उनके आसपास खड़ा कोई लड़का उन्हें दूसरी थैली पकड़ा देता और वो 100 ग्राम , आधा किलो 1 किलो 2 किलो 5 किलो जैसी मात्रा एवम वस्तु का नाम जैसे सूजी मैदा या बूरा बता देता लालाजी तुरंत थैली के मुंह को खोल उसमें ग्राहकों द्वारा वांछित वस्तु भरकर और झटके ले लेकर तोलना बिना रुके जारी किये थे , और यदि जरा भी उनका हाथ थोड़ी देर के लिए तोलने से रुक जाता तो बिना सांस लिए तुरंत जोर जोर से अपने अपनी दुकान पर लगे कर्मचारी लड़कों पर चिल्ला उठते थे
मेरा हाथ खाली क्यों है ?
मेरा हाथ खाली क्यों है ?
मुझे लगा सुबह-सुबह जब से उन्होंने अपनी दुकान खोली है और शाम देर शाम तक जब तक वह अपनी दुकान बढ़ा कर घर नहीं पहुंच जाएंगे तब तक अपना हाथ खाली ना होने पाए के प्रयास में लगे रहेंगे । उनकी हालत देखकर लगता था कि शायद आजकल ये नींद में या अपने सपनों में भी मैदा , सूजी या बूरा तौलते होंगे और रात में भी नींद से उठ उठ कर चिल्लाते होंगे की मेरा हाथ खाली क्यों है ?
कभी-कभी किसी सर्जन के व्यस्त ओ टी ( ऑपरेशन थिएटर ) में तैयार खड़े ग्लोवज़ पहने सर्जन को अपनी टीम से जब ज़ोर से बोलते हुए जल्दी-जल्दी करने के लिए कहते देखता हूं तो मुझे उस लाला की याद आ जाती है ।
या फिर कभी-कभी किसी लंबे ओपीडी में व्यस्त किसी फिजीशियन को सर उठा कर यह पूछते हुए देखता हूं कि अभी कितने बचे तो भी मुझे उस लाला की याद आ जाती है।
ऐसा लगता है कि हम भी उस लाला की ही तरह जिंदगी जी रहे हैं ।सुबह से शाम तक पूरी ज़िंदगी बस सूजी , मैदा , बूरा – सूजी ,मैदा , बूरा में लगे रहते हैं ।
अपनी तमाम विषमताओं एवं विसंगतियों के बावजूद इस कोरोना काल में उस लाला की जिंदगी में भी एक ठहराव आया होगा और उसके हाथ अब खाली हुए होंगे । प्रकृति ने उस लाला की ही तरह इस कोरोना काल के स्वरुप हमारी ज़िंदगियों में भी एक ठहराव का अवसर प्रदान किया है , इस अवसर को समझने की आवश्यकता है कि
कहीं उस लाला की तरह हम भी जिंदगी भर सूजी , मैदा , बूरा की तरह अपना व्यवसाय करते ही न करते रह जाएं , कुछ और भी बेहतर संपन्न कर सके । ज़िन्दगी की आपाधापी में कहीं ये बात कहीं भूल न जाएं कि हम कहां से आये हैं और क्या कर रहें हैं और कहां हमको जाना है ।