मेरा स्वाभिमान है पिता।
मेरा अभिमान मां है तो,
मेरा स्वाभिमान है पिता।
मेरी मां पृथ्वी है तो,
मेरा आसमान है पिता।।
मां मेरी जननी है तो,
मेरी पहचान है पिता।।
मां ने मुझे,
पैरों पर चलना सिखाया है तो।
पिता ने मुझे,
जीवन में अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया है।।
जब कोई चोट लगे जो तन को तो,
मुंह से “ओ मां” निकलता है।।
पर यदि पास से कोई बड़ा संकट गुजरे तो,
इसी मुंह से “बाप रे” भी निकलता है।।
क्योंकि छोटे दुःख,दर्द के लिए,
मां याद आती है।।
पर बड़े संकट के आने पर,
पिता की याद आती है।।
मां शब्दों को बोलना सिखाती है तो,
पिता इन शब्दों को लिखना सिखाता है।।
यदि मां की ममता में प्रेम अपार है तो,
पिता भी वट वृक्ष की शीतल छांव है।।
असमंजस के पलों में,
पिता अपने संग होने का विश्वाश दिलाता है।
कैसी भी हो परिस्थिति,
पिता हर स्थिति में अपना फ़र्ज़ निभाता है।।
पिता संघर्ष में,
हौसलों की दीवार होता है।
परेशानियों से लड़ने की,
धारी तलवार होता है।।
पिता सूरज की किरणों का शोर है।
मैं पतंग ऊंचे गगन की पिता मेरी डोर है।।
मेरा साहस मेरा सम्मान पिता है।
मेरी ताकत मेरी पूंजी मेरा भगवान पिता है।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ