मेरा सुनहरा सपना
सपने में सपना देखा
अपनी मौत का सपना देखा
अपनी मौत को करीब से देखा…
कफ़न में लिपटे तन को देखाअपने जलते बदन को देखा…..हाथ बांधे लोगों को देखा
कतार में खड़े लोगों को देखा कुछ परेशान चेहरों को देखा
कुछ उदास चेहरों को देखा कुछ छुपा रहे अपनी मुस्कान थे
इस रगंमचं की दुनिया से हम अनजान थे
दूर खड़ी मैं देख रही थी उनके जज़्बात समझ रहा थी. तभी किसी ने हाथ बढ़ा दियाथा अपने हाथों में हाथ थाम लियाथा मैंने भी मुड़कर उसको देखा जिसने मुझको थाम लिया था देख उस को मैं बड़ा हैरान थी जो कल तक आस पास के लोगौं की बातों की भय से मेरे साथ चलने से डरता था आज उसके हाथों में मेरा हाथों था…आंखों में स्नेह था चेहरे पर मुस्कान थी
न अब किसी का डर,भय था
जान जब देखा मैंने उसको जिज्ञासा से वो हँस कर बोला मै….अपनी बेवक़ूफ़ियो पर ये सोच कर हैरान हूँ….. …तभी खुली आँख मेरीमै बिस्तर पर विराजमान थी…..कितना थी नादानमैं हकीकत से अनजान थी
मेरा सुनहरा सपना