मेरा साया
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खामोश एहसासों में
एक धुंधला सा चेहरा उभरता है।
तू जिन्दगी है मेरी,
आके हाउले से मेरी कानों में कहता है।
उसकी एक छुअन से,
मेरा रोम-रोम सिहरता है।
वो चेहरा कुछ
जाना पहचाना सा लगता है।
खिंचती जाती हूँ उसी ओर
वो जिधर ले जाना चाहता है।
उसके वश मे वशीभूत
मन पर वश नहीं चलता है।
इस कदर
मेरे वजूद में वो चेहरा समाया है।
उस चेहरा में
मेरा चेहरा नजर आता है।
मैं और तुम में
कोई अन्तर पता नहीं चलता है।
गौर से देखा तो,
जब खुद को टटोला तो पाया है।
वो चेहरा कोई और नहीं,
मेरे मन के अंदर का साया है।
मुझे राह दिखाने,
मेरे अंधेरों को मिटाने मेरे पास आया है।
ये चेहरा
मेरी अधूरे सपने मेरी हिम्मत है।
जो मेरी ताकत बनकर,
मुझे आगे बढ़ने कहता है।
ये मेरी इच्छा,
मेरी आकांक्षा है।
ये चेहरा
मेरा हौसला बढाता है।
हर पल, हर कदम,
मेरे साथ चलता है।
????—लक्ष्मी सिंह ?☺