मेरा साया ही
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मेरा साया ही
बस मेरा हमसाया है
हाथ थामने वाले तो
कब का छोड़ गए
घण्टों बातें करने वाले
वायदा तो कब का तोड़ गए
बस फ़ितरत की बात है
अब तो शर्म से आँखें भी नहीं झुकतीं
दगा देते वो ख़ुद हैं
दाग़ दमन पे आपके
लगा जाते हैं
अतुल “कृष्ण”
मेरा साया ही
बस मेरा हमसाया है
हाथ थामने वाले तो
कब का छोड़ गए
घण्टों बातें करने वाले
वायदा तो कब का तोड़ गए
बस फ़ितरत की बात है
अब तो शर्म से आँखें भी नहीं झुकतीं
दगा देते वो ख़ुद हैं
दाग़ दमन पे आपके
लगा जाते हैं
अतुल “कृष्ण”