मेरा साथी अब सपने में
* मेरा साथी अब सपने में
नहीं रहे तुम भले धरा पर,सपने में तुम दिख जाते हो।
साथ छोड़ कर चले गये क्यों,सपने में तुम मिल जाते हो।
लगता नहीं दूर हो प्यारे,बहुत निकट तुम बैठे रहते।
तरह तरह की बातेँ होती,मस्ती में दोनों सब कहते।
कुछ भी नहीं छिपा रहता है,आनंदित होता यह जीवन।
जीवन के आनंद भवन में,हँसता बहता है प्रेम पवन।
सुरभित बगिया के आँगन में,पुष्प सुशोभित प्रिय लगते हैं।
हाय मित्र!तुम गये सो कहाँ ,सपने में ही क्यों जगते हो?
तुझ सा मित्र न कोई होगा,अति प्रबल पक्ष सामाजिक था।
नहीं पराया कोई तेरा,य़ह जग सब सारा अपना था।
चले गये क्यों इतनी जल्दी,माया मोह सभी तुम त्यागे।
हुआ अचानक क्या तुझको जो,सबको त्याग जगत से भागे।
रोती है य़ह मित्र मण्डली,घर परिजन सब विलख रहे हैं।
आओ जल्दी देख स्वज़न सब,बाट तुम्हारी जोह रहे हैं।
बिना तुम्हारे शून्य नगर है,आंखे सब की पथरायी हैं।
भावुक दिल को ठौर नहीँ है,घोर निराशा अब छायी है।
सपना तो सपना होता है,उससे तोष नहीं मिल सकता।
आ जाओ अब मित्र पास में,मिलने की है अति व्याकुलता।
हे कोमल मृदु मोहक साथी, करना अब नहीं बहाना है।
आकर पास खड़े हो जाओ, जल्दी से तुझको आना है।
हे प्रसिद्ध नारायण मिश्रा,तुम्हीं मित्र प्रिय मनलायक हो।
आ कर दर्शन दे दो प्यारे,मन बहलाते सुखदायक हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।